THE CORONA CRISIS REVEALS INDIA AS CRUEL & HEARTLESS

THE CORONA CRISIS REVEALS INDIA

AS CRUEL & HEARTLESS.

31st March 2020

Statement by Saheli on the State’s inhuman treatment of the poor.

APOLOGIES ABOUT THE DISTRESS CAUSED BY THE LOCKDOWN MEAN NOTHING WITHOUT ACKNOWLEDGING (AND CORRECTING) THE TRANSGRESSIONS OF THE STATE AGAINST THE PEOPLE WHO ARE WORST HIT BY THIS CRISIS.

Our heads must hang in collective shame at images of poor, migrant and marginalised people -  women and men, young and old, children, people with disabilities, people from underprivileged communities - being inhumanly treated by state administrations the police and other security forces.

The anti poor, anti-Dalit, anti-Muslim, regional and ethnic biases propagated by the powers that be are in blatant display during this, the greatest humanitarian crisis that we, and most other countries have ever faced. Since the last few days, extremely poor daily wagers have been leaving many major cities to try and reach their villages and home towns to escape the joblessness (and pennilessness) they are facing under the lockdown, the lack of any economic and social security, and total uncertainty about returning to work. Without money and resources, they have taken to the roads, with nothing to eat and no drinking water, leave aside water and soap to wash their hands! Yet they have been further traumatised by security forces beating them, making them sit with heads in between their legs as ‘punishment’ for breaking curfew, and most horrifying of all, being sprayed with chemicals to ‘disinfect’ them – with no concern for their health, safety or dignity! Was this done to those who were brought back by planes from other countries, who could actually have been the first carriers of deadly corona virus?

The PM, CMs and many other government officials are issuing statements to create awareness about the virus, but unfortunately, their repeated messages on social media talk about ‘giving a free hand to law enforcement’. On the ground this has meant a ‘free hand’ for security personnel to stop the poor from stepping out to buy vegetables, beating citizens in minority dominated areas at ration shops, ostracising and harassing those already at the margins of our society –  Dalit, Muslim, Trans persons, sex workers, persons with disabilities etc who have, for the last several years, led amazing struggles for their rights as full citizens.

Today we reaffirm and invoke these very constitutional rights and assert that every person in India be treated with equality and dignity. WE URGE THE AUTHORITIES TO PUT AN IMMEDIATE STOP TO THE RUTHLESS AND INHUMAN DISPLAY OF POWER BY THE STATE AGENCIES, AND ISSUE ORDERS TO THIS EFFECT. The government at both the Centre and at state levels, needs to prove that they are the government of all, not just the privileged few.

AFTER ALL, SOCIETY IS JUDGED BY HOW IT TREATS IT’S POOREST, WEAKEST & MOST VULNERABLE.

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कोरोना  महामारी और भारत का बेरहम चेहरा

31-मार्च-20

सहेली का सरकार द्वारा ग़रीबों के साथ अमानवीय व्यवहार पर बयान

लाक्डाउन के कारण हुई पीड़ा के लिए माफ़ी माँगने का कोई अर्थ नहीं रह जाता यदि सरकार उन लोगों पर की गई  ज़यादतियो को न क़बूले (और न सुधारे, जो इस आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

ग़रीब, अधिकारहीन,और प्रवासी व्यक्तियों, महिलायों और पुरुषों, बूढ़े और युवाओं, बच्चों, विकलांगो, शोषित समुदायों के लोगों पर सरकार, पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार की तस्वीरों को देख कर हम सब का सर शर्म से झुक जाना चाहिए।

मानवजाति पर आए ऐसे संकट के दौरान जो अभी तक की सबसे बड़ी आपदा है जो हमने और अधिकतर देशों ने पहली बार देखी है, सरकार द्वारा प्रसारित किए गए ग़रीब -विरोधी, दलित-विरोधी, मुस्लिम-विरोधी, प्रांतीय और प्रजातीय पूर्वाग्रह स्पष्ट रूप से सामने आ गए हैं। पिछले कुछ दिनो से निहायत ग़रीब दिहाड़ी मज़दूर, लाक्डाउन के दौरान जन्मी बेरोज़गारी (और बिना पैसे की हालत) से निजात पाने के लिए, आर्थिक या सामाजिक सुरक्षा के अभाव और काम पर वापिस लौटने की पूर्ण अनिश्चितता के कारण लगभग सभी मुख्य शहरों को छोड़ अपने अपने गावों और निवास नगरों की ओर लौटने का प्रयास कर रहे हैं। बिना पैसे और अन्य ज़रियों के उनमें से बहुत सड़कों पर पर निकल पड़े हैं । हाथ धोने के लिए साबुन और पानी तो दूर की बात, उनके पास भोजन और पीने के पानी का इंतज़ाम तक नहीं है। पर इसके बावजूद बिना उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और गरिमा का ख़्याल किए, उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा पीटा और कर्फ़्यू तोड़ने की ‘सजा’ के तौर पर मुर्ग़ा बन बैठने पर मजबूर किया जा रहा है। और इनमे सबसे ख़ौफ़नाक तो यह है कि उन्हें ‘कीटाणुओं से मुक्त’ करने के लिए उन पर रसायन छिड़के जा रहे हैं! क्या ऐसा उन लोगों के साथ किया गया था जो हवाई जहाज़ों की मदद से दूसरे देशों से भारत वापिस लाए गए थे, जो शायद ख़तरनाक कोरोना वाइरस को शुरुआती दिनों में भारत लेकर आए?

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य सरकारी अफ़सर कोरोना के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए बयान जारी कर रहे हैं, पर दुर्भाग्यवश उनके सोशल मीडिया पर बार बार दोहराए जा रहे संदेश ‘क़ानून के रखवालों को खुली छूट’ देने की बात कर रहे हैं। हक़ीक़त में इसका मतलब है, सुरक्षा बलों को ग़रीबों को अपने घर से साग सब्ज़ी ख़रीदने के लिए निकलने से रोकने, अल्पसंख्यक इलाक़ों में राशन की दुकानों पर लोगों को पीटने, और जो पहले ही समाज के हाशिए पर हैं- जैसे दलित, मुस्लिम, किन्नर, वेश्याएँ, विकलांग व अन्य लोग जिन्होंने पिछले कई सालों में अपने पूर्ण नागरिक होने के अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया है,को सताने व समाज से और परे धकेलने की छूट।

आज हम उन्हीं संवैधानिक अधिकारो का आह्वान और उनकी पुनः पुष्टि करते हैं और बलपूर्वक कहते हैं कि भारत में हर व्यक्ति से सम्मान और समानता का व्यवहार किया जाए। हम सरकारी एजेंसियों से इस अमानवीय और बर्बर ढंग से अपनी शक्ति के इस्तेमाल को तुरंत बंद करने का और इस बाबत आदेश जारी करने की मांग करते हैं। केंद्र और राज्य, दोनो स्तरों की सरकारों को यह साबित करने की ज़रूरत है कि वे सबकी सरकारें हैं, और न केवल कुछ विशेषाधिकृत लोगों की।

आख़िरकार, एक समाज की असली परख इस बात से होती है कि वह अपने सबसे ग़रीब, कमजोर और पिछड़े लोगों से कैसा बर्ताव करता है।